कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत कालागढ़ टाइगर रिजर्व प्रभाग में पाखरो टाइगर सफारी के बहुचर्चित प्रकरण में तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री डा हरक सिंह रावत की मुश्किलें बढऩी तय हैं। सफारी के लिए अवैध कटान व निर्माण के मामले में सुप्रीम कोर्ट की उच्चाधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट में पूरे प्रकरण के लिए डा रावत के साथ ही तत्कालीन डीएफओ किशन चंद को भी जिम्मेदार ठहराया गया है।
समिति ने डा रावत को नोटिस भेजने के साथ ही उनका जवाब आने के बाद उचित कार्रवाई करने की संस्तुति भी की है। कालागढ़ टाइगर रिजर्व में टाइगर सफारी और वन्यजीव बचाव केंद्र (रेस्क्यू सेंटर) का मामला तब सुर्खियों में आया, जब वर्ष 2020 में अवैध कटान व निर्माण की शिकायत पर एनटीसीए ने स्थलीय निरीक्षण किया। एनटीसीए ने दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की संस्तुति की। मामले में तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग व कालागढ़ के तत्कालीन डीएफओ किशन चंद को निलंबित किया गया था। दोनों अधिकारी अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। तब कार्बेट टाइगर रिजर्व के तत्कालीन निदेशक राहुल को वन मुख्यालय से संबद्ध किया गया था। प्रकरण की विभागीय और विजिलेंस जांच में कदम-कदम पर अनियमितता की पुष्टि हुई थी। इस बीच सीईसी ने भी प्रकरण का संज्ञान लिया। साथ ही शासन से रिपोर्ट मांगी। अब सीईसी ने संस्तुतियों सहित अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है।
सीईसी ने रिपोर्ट में कहा है कि एनटीसीए की गाइडलाइन के अनुसार टाईगर रिजर्व व बाघों के प्राकृतिक आवास के बाहर ही टाइगर सफारी बनाई जा सकती है। बाघों के आने-जाने के रास्तों से हमेशा दूरी बनाए रखनी चाहिए, ताकि उनका आवास पर्यटन विकास की बलि न चढ़े। सीईसी ने संस्तुति की है कि टाइगर रिजर्व क्षेत्र में वन्यजीव बचाव केंद्र को न्यूनतम जगह दी जाए। इसके अलावा जो अवैध निर्माण हुए हैं, उन्हें तुरंत ध्वस्त करने के साथ ही पर्यटन गतिविधियों पर भी रोक लगाई जाए।
सीईसी ने यह भी संस्तुति की है कि सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार को निर्देशित करे की टाइगर सफारी और उसके बाहर जितने भी अवैध निर्माण हैं, उन्हें ध्वस्त किया जाए। साथ ही सनेह व पाखरो में बिछाई गई विद्युत लाइनें हटाई जाएं। रिपोर्ट में उल्लेख है कि राज्य सरकार और विजिलेंस पाखरो टाइगर सफारी और अन्य अवैध गतिविधियों में शामिल तत्कालीन डीएफओ किशनचंद समेत अनियमितता में शामिल अधिकारियों के विरुद्ध वन एवं वन्यजीव अधिनियम के तहत कार्रवाई जारी रखे। साथ ही राज्य सरकार छह माह के भीतर इसकी कार्रवाई की रिपोर्ट सीईसी के जरिये सुप्रीम कोर्ट को प्रस्तुत करे। रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण टाइगर रिजर्व, वन्यजीव अभयारण्य व राष्ट्रीय पार्क के साथ ही वन्यजीव गलियारों में जू और सफारी के निर्माण की अनुमति न दे। सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को वन और वन्यजीव सुरक्षा से संबंधित कानूनों में बदलाव के लिए निर्देशित किया जाए, ताकि वन्यजीव पर्यटन के नाम पर वन्यजीवों के आवास से छेड़छाड़ को हतोत्साहित किया जा सके। टाइगर रिजर्व क्षेत्र में जू और सफारी को दी गई अनुमति वापस ली जाएं।

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