आजादी अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में हर घर तिरंगा अभियान को लेकर बाजारों में झंडे की मांग बढ़ गई है। थोक विक्रेताओं से लेकर फैक्ट्रियों तक बंपर ऑर्डर मिल रहे हैं। दुकानदार मांग पूरी नहीं कर पा रहे हैं। व्यापारी बताते हैं कि सामान्यत: पिछले वर्ष तक 15 से 20 लाख तक झंडे बेचे जाते थे लेकिन इस बार सदर बाजार में बीते डेढ़ सप्ताह के अंदर एक करोड़ से अधिक झंडे की बिक्री हो चुकी है। अभी दो करोड़ की और मांग है।
व्यापारियों ने बताया कि ऑर्डर समय पर पूरा करने के लिए दिन-रात फैक्ट्रियों में काम चल रहा है। मांग का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रविवार को बारिश के बीच भी बड़ी संख्या में लोग तिरंगा खरीदने यहां पहुंचे थे। इनमें सबसे ज्यादा फुटकर विक्रेता थे, जो यहां माल उठाकर दूसरी जगहों पर बेचते हैं।
दस-दस लाख के ऑर्डर एक जगह से : उत्तर भारत में सदर बाजार तिरंगा झंडा तैयार करने का सबसे बड़ा बाजार माना जाता है। पांच से सात बड़े कारोबारी हैं। इसके अतिरिक्त बाजार में 400 से 500 दुकानों पर तिरंगे थोक मूल्य पर उपलब्ध हैं। व्यापारियों का कहना है कि एक अगस्त के बाद से लगातार ग्राहकों की संख्या बढ़ रही है। इस बार देश आजादी का 75वां वर्ष पूरा होने पर अमृत महोत्सव मना रहा है। इसमें हर घर तिरंगा लगाने का अभियान शुरू किया गया है।
स्थानीय व्यापारी कहते हैं कि जब से अभियान की शुरुआत हुई है तब से ऑर्डर की संख्या बढ़ती जा रही है। स्थिति यह है कि एक-एक जगह से 10-10 लाख झंडे के ऑर्डर मिल रहे, जिसे पूरा करने में परेशानी हो रही हैं, क्योंकि जहां इन्हें तैयार किया जा रहा हैं, उन फैक्ट्रियों के पास भी निर्धारित संसाधन उपलब्ध हैं।
तीन शिफ्ट में हो रहा निर्माण : कृष्णा प्रिंटिंग के नाम से फैक्ट्री और खुराना इंटरप्राइजेज के नाम से सदर में दुकान चलाने वाले गुलशन खुराना ने बताया कि मैं जुलाई में अमेरिका गया था। जब पता चला कि तिरंगे के बंपर ऑर्डर आ रहे हैं तो तुरंत वापस लौटना पड़ा। अब तक 40 लाख झंडे बेचे जा चुके हैं और 50 से 60 लाख का ऑर्डर पड़ा है। इसलिए मजदूरों की संख्या बढ़ाई है और ओवरटाइम का भुगतान करके तीन शिफ्टों में 24 घंटे तिरंगे तैयार करा रहे हैं।
सबसे ज्यादा मांग राजनीतिक दल, उनसे जुड़े संगठन, सरकार और उससे जुड़े विभागों की ओर से आ रही हैं। इसके बाद आरडब्ल्यूए की ओर से भी सीधे ऑर्डर मिले हैं। एक-एक आरडब्ल्यूए की ओर से पांच से 10 हजार झंडों के ऑर्डर मिले हैं। सामाजिक संगठन, एनजीओ और स्कूल और कॉलेज की ओर से भी मांग है।