उत्तराखंड के हर व्यक्ति पर होगा एक लाख से अधिक का कर्ज

उत्तराखंड को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है। भले ही राज्य सरकार ने करीब 65 करोड़ रूपए के बजट की घोषणा की है। लेकिन मीडिया रिपोर्टस की माने तो राज्य कर्ज के बोझ के तले डूबा हुआ है। उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार कर्ज का आंकड़ा हजार करोड़ रुपए की सीमारेखा को लांघकर एक लाख करोड़ पार करता दिख रहा है। माना जा रहा है कि वित्तिय वर्ष की समाप्ति तक प्रति व्यक्ति कर्ज की तुलना की जाए तो एक-एक व्यक्ति एक लाख रुपए से अधिक के कर्ज तले डूबा नजर आएगा। मीडिया रिपोर्टस की माने तो  2020-21 के मुकाबले 2021-22 में यह दर बढ़कर 16 प्रतिशत को पार कर गई। अब कर्ज इससे भी लंबी छलांग लगाता दिख रहा है। बताया जा रहा है कि वित्तीय समीक्षा रिपोर्ट के आंकलन के अनुसार 2022-23 में कर्ज 25 प्रतिशत से अधिक दर से बढ़ता दिख रहा है। आंकड़े बता रहे है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में 1.075 लाख करोड़ रुपए कर्ज की राशि है। जबकि 2021-22 में ये कर्ज की राशी 85486 करोड़ रुपए थी।

हालांकि कहा जा रहा है कि कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के समय में मिली गहरी आर्थिक चोट और उससे उबरने की जिद्दोजहद में कर्ज पर कर्ज लेना सरकार की मजबूरी बन गया। अब स्थिति यह है कि इस वित्तीय वर्ष 2022-23 की समाप्ति तक यह आंकड़ा 1.075 लाख करोड़ रुपए पार होता दिख रहा है।

राज्य सरकार के बजट दस्तावेजों से बनी एक रिपोर्ट यही बताती है कि 2021-22 तक उत्तराखंड सरकार पर 73,477.72 करोड़ रुपए का कर्ज था, ये कर्ज चुकता नही हुआ उल्टा राज्य सरकार कर्मचारियों के वेतन,पेंशन विकास इत्यादि के लिए कर्ज पर कर्ज लिए जा रही है। ऐसा ही रहा तो अगले 5 सालों में राज्य सरकार राज्य के विकास, वेतन,पेंशन,इत्यादि के लिए 54,496 करोड़ रुपए का कर्ज और ले सकती है। सरकार कर्ज तो ले रही है। लेकिन इसे कैसे चुकाया जाएगा इस पर कोई चर्चा नहीं है। उत्तराखंड में जिस तरह से माननीयों के ठाठ-बाट हैं, सरकारी खर्चे हैं, उससे दूर-दूर तक इस बात का एहसास नहीं किया जा सकता कि यह वही उत्तराखंड है, जो हज़ारों करोड़ रुपये के कर्ज़ में डूबा हुआ है। अगर आप विधायकों के सरकारी खर्च ​का​ डेटा देखें या सुनें तो आपको भी हैरत हो सकती है। उत्तर प्रदेश से अलग होकर 2000 में उत्तराखंड बना था और तबसे देखा जाए तो माननीयों पर सरकारी खज़ाने का 100 करोड़ रुपया खर्च हो चुका है।

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