प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ‘नेगीदा’ ने कह कि मैंने अपने गीतों में हमेशा लोक पक्ष को तरजीह दी, इसलिए मेरे गीतों में लोक मुखर होकर उभरा है। सबसे बड़ा पुरस्कार जनता से मिला स्नेह है। इसलिए वह इस प्रतिष्ठित अकादमी सम्मान को उन लोककर्मियों को समर्पित करते हैं, जो बिना किसी स्वार्थ के मनोयोग से बोली-भाषा के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं।
हाल में प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी सम्मान से नवाजे गए लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने रविवार को उत्तरांचल प्रेस क्लब में आयोजित संवाद कार्यक्रम में कहा कि राज्य गठन के बाद इन 21 वर्षों में गढ़वाली-कुमाउनी एवं अन्य लोक भाषाओं के उत्थान के लिए सरकारी स्तर से कोई जमीनी प्रयास नहीं हुए। हमारे पास पंजाबी, उर्दू, हिंदी अकादमी तो है, लेकिन लोकभाषा अकादमी नहीं है। यह अच्छी बात है कि नई पीढ़ी गढ़वाली-कुमाउनी लिख और गा रही है। दुनिया में उत्तराखंडी लोकगायकों को मनोयोग से सुना जा रहा है। इसमें सोशल मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान है। लोकभाषाओं को सम्मान सिर्फ सरकारी प्रयासों से नहीं मिलेगा। समाज और व्यक्ति के स्तर से पहल करनी होगी। सबसे अहम है लोकभाषाओं के प्रति हीनता को त्यागना। इस मौके पर क्लब परिवार की ओर से लोकगायक नेगी को स्मृति चिह्न एवं शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। प्रेस क्लब को साउंड सिस्टम प्रदान करने वाले राज्य आंदोलनकारी जयदीप सकलानी को भी स्मृति चिह्न भेंट किया गया। प्रेस क्लब महामंत्री ओपी बेंजवाल ने सभी मेहमानों व लोक साहित्य प्रेमियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में साहित्यकार नंदकिशोर हटवाल, संदीप रावत, कवि एवं गीतकार मदन डुकलान, ईश्वरी प्रसाद उनियाल, कविलास नेगी मौजूद रहे।