पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और खानपुर के मौजूदा विधायक उमेश कुमार के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद का भले ही सुप्रीम कोर्ट के पटल पर हास्यास्पद पटाक्षेप हुआ हो, लेकिन नेताओं के बीच लंबे समय से चल रही खींचतान ने सूबे का बड़ा नुकसान किया। इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि त्रिवेंद्र को चार साल की सत्ता से पदच्युत करने में अप्रत्यक्ष रूप से उमेश कुमार के त्रिवेंद्र विरोधी अभियान की भी बड़ी भूमिका रही है। किसी भी प्रदेश में सामान्य रूप से चलती सरकार के मुखिया को बदलने से निश्चित रूप से विकास कार्य प्रभावित होते हैं। वहीं देश दुनिया में राज्य की छवि को भी बट्टा लगता है। ज़ाहिर सी बात है ऐसे परिवर्तनों से राज्य में निवेश करने वाले अथवा करने के इच्छुक निवेशकर्ता भी आशंकाओं से घिर जाते हैं। जिसका सीधा असर प्रदेश के विकास पर पड़ता है।
करीब 3 वर्ष तक त्रिवेंद्र और उमेश के दरमियान कटुता व वैमनस्य की हद तक विवाद चलता रहा, प्रदेश के आम जनमानस में दो प्रकार के संदेश प्रसारित होते रहे। पहले संदेश के मायने यह थे कि त्रिवेंद्र भ्रष्टाचार को प्रश्रय दे रहे थे जबकि दूसरा पहलू यह था कि उमेश कुमार ब्लैकमेलिंग कर लाभ लेना चाह रहे हैं।
वहीं गत सप्ताह जब यह खबर उड़ी कि उमेश कुमार के विरुद्ध राजद्रोह के मुकदमें को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एसएलपी को सरकार वापस लेना चाह रही है तो नया बबाल खड़ा हो गया। यहां तक कि इस चर्चा को मीडिया ने धामी और त्रिवेंद्र के मध्य बड़े मतभेदों का सबब करार दे दिया। जिससे प्रदेश के सियासी माहौल में एकाएक गर्मी आ गयी। लगा कि कहीं से सरकार को अस्थिर करने की साजिशें होने लगी हैं। 22 नवम्बर को जब इस मामले को लेकर सुनवाई के दौरान दोनों पक्ष गलबहियां करने लगे तो साफ हो गया कि इतने लंबे समय तक दोनों पक्ष एक प्रकार से नौटंकी कर प्रदेश के हित व भविष्य के साथ खिलवाड़ करने में मशगूल थे।
इधर हालिया अप्रत्याशित घटनाक्रम से यह सवाल उठना भी लाजिमी है कि कहीं न कहीं पूर्व सीएम त्रिवेंद्र को सीबीआई जांच का जिन्न का डर सता रहा है, झारखंड रिश्वत कांड में कहीं न कहीं त्रिवेंद्र अथवा उनके सहयोगियों की टांग फंसी हो सकती है। वहीं इस घटनाक्रम ने उमेश कुमार पर भी सवाल उठाने का मौका दे दिया है, यदि उमेश प्रदेश हित व भ्रष्टाचार के खिलाफ जो प्रतिबद्धता ज़ाहिर करते हैं वह खोखली थी।
बहरहाल, त्रिवेंद्र व उमेश की इस नूराकुश्ती का पटाक्षेप इतना हास्यास्पद हुआ कि पूरा प्रदेश और प्रदेश की सियासत ही हास्य का विषय बन गयी।